"किनारे की चट्टान लहरों के उन्माद को बड़ी शालीनता से सहती है और अपने धैर्य से उद्दंडता को करारा जवाब देती है।"
यह पंक्ति किसी बहुत बड़े दार्शनिक का कथन नहीं, बल्कि एक युवा कवि की कविता का भावार्थ है। इसी तरह की अनेक पंक्तियाँ हमें इस कवि की पहली पुस्तक 'किनारे की चट्टान' में पढ़ने को मिलती हैं। महादेव, सुंदरनगर (हि.प्र.) के रहने वाले पवन चौहान की यह पुस्तक जैसे ही हमारे हाथ में आती है, तो हमारी नज़र इसके आवरण पृष्ठ पर लिखी इन पंक्तियों पर ज़रूर पड़ती है-
किनारे पर बैठा कवि देखता है सब
लहरों का उन्माद,
चट्टान की सहनशीलता,
समुद्र से टकराने का हौसला,
उसकी दृढ़ता, आत्मविश्वास
वह भी होना चाहता है चट्टान
किनारे वाली चट्टान
ये कुछेक पंक्तियाँ किसी भी हारे हुए योद्धा अथवा निराश व्यक्ति के अंतर्मन में पुन: संघर्ष का जज़्बा भर सकती हैं। जीने की उम्मीद जगा सकती हैं, मुश्किलों से लड़ने का हौसला दे सकती हैं।
कविता की अपनी पहली ही पुस्तक में पवन चौहान जी जीवनानुभवों से पगी ऐसी ही अनेक पंक्तियाँ लेकर हमारे सम्मुख उपस्थित होते हैं और बहुत शालीनता से हमारे मन-मस्तिष्क पर दस्तक दे जाते हैं।
इस पुस्तक को पढ़ते हुए आप कई बार हैरान होंगे क्योंकि यह कवि अक्सर ऐसी बड़ी-बड़ी बातों को सहजता से आपके सामने कविता के रूप में परोस जाता है, जिसके बारे में आप अब तक सोच ही नहीं पाये होंगे।
अपनी पुस्तक में पहली ही कविता 'खेत की बाड़' के माध्यम से एक ग्रामीण क्षेत्र के परिवेश में घर में कोई नया कार्य होने पर परिवार के सदस्यों की मन:स्थिति का बड़ी बारीकी से यथार्थ चित्रण कर अपनी काव्य प्रतिभा का ज़बरदस्त परिचय दिया है। कुछ पंक्तियाँ देखें-
बाड़ लगने की ख़ुशी में
लाड़ी मेरी कहे बगैर ही
पिला रही है चाय बार बार
क्यूंकि अब नहीं चढ़नी पड़ेगी उसे
तीन मंज़िला घर की
थका देने वाली सीढ़ियाँ
वह सुखाएगी अब कपड़े इसी बाड़ पर
एक कविता 'चिम्मु' के द्वारा अपनी बेटी को याद करते हुए बड़े संवेदनशील तरीक़े से भावनाओं को कविता का जामा पहनाया गया है। कवि की बेटी घर से दूर है और उसे शहतूत के पेड़ पर लगने वाला फल, जिसे स्थानीय भाषा में 'चिम्मु' कहा जाता है, बहुत पसंद है। पेड़ पर चिम्मु के पक जाने पर अपनी बेटी को याद करते हुए कवि बहुत सुंदर तरीक़े से बेटी से जुड़ी भावनाएँ काग़ज़ पर उतारता है और उसे कविता में ढाल देता है।
आगे के क्रम में पवन चौहान जी एक कविता 'अरसा' में एक रचनाकार के 'शून्यकाल' की स्थिति को कविता में बाँध ले गये हैं। लम्बे समय तक क़लम ख़ामोश रहने पर कलमकार के मन में जो छटपटाहट होती है, उसे शब्द देने में वे पूरी तरह सफल हुए हैं। मेरे ख़याल में इस कविता का शीर्षक यदि 'कोई बोलती पगडण्डी' होता तो बेहतर लगता। कविता की कुछ पंक्तियाँ देखें-
बहुत अरसा हो गया
कलम से झरते उन शब्दों को भी
रचते रहते थे जो कुछ नया हमेशा
देते रहते थे साकार रूप
उन अनबुझी, अनछुई
हकीकत तलाशती कल्पनाओं को
'काफ़ल' नामक कविता में नीलू की माँ के माध्यम से पहाड़ी परिवेश में महिलाओं की जीवनचर्या से परिचय करवाने के साथ ही पहाड़ों में पैदा होने वाले एक फल काफ़ल के महत्त्व से भी बाख़ूबी परिचय करवाया है।
'खिलौना-2' कविता में पवन चौहान जी जीवन की वास्तविकता और कड़वे यथार्थ का परिचय करवाते हैं। 'यूज़' होने बाद उपेक्षित हुए व्यक्ति के अहसासों को कविता में अच्छी अभिव्यक्ति मिली है।
संग्रह की एक कविता 'सपने' अपने कार्यों के द्वारा प्रतिद्वंदियों को जवाब देने का सन्देश देती है, कवि के शब्दों में-
मैं गढ़ने लगा हूँ
फिर वही सपने
ढेरों सपने
पर नहीं बतियाता किसी से
पूरा हुआ मेरा सपना
दे देता है ख़ुद ही जवाब
और एक करारा तमाचा
मेरे ख़ास
दुश्मनों को
दूसरों को उपदेश देने से पहले अपने गिरेबान में झाँकने की बात कहती कविता 'कभी कभी' भी अच्छा असर छोड़ती है। दूसरों की बहुत सी ऐसी बातें होती हैं जो हमें ग़लत लगती हैं और कभी कभी गुस्सा भी दिलाती हैं, लेकिन जब कभी हम ख़ुद में झाँककर देखते हैं तो हमें ख़ुद में ही वो कमियाँ मुँह चिढ़ाती दिखती हैं और तब हमें ख़ुद से छिपने का स्थान भी नहीं मिलता।
संग्रह की एक बहुत प्रभावी कविता है 'माँ बकती है'। इस कविता के द्वारा कवि ने माँ के 'बकने' के कारणों का गहन विश्लेषण कर उसके ऐसा करने को सही ठहराया है। माँ के गुस्से का रहस्य जानकर कवि ने उनके साथ होने वाले ग़लत कामों पर माँ के चिढ़ने को सही ठहराया है।
घरों में कुत्ता पालना आज के दौर में 'स्टेटस सिम्बल' हो गया है। कविता 'शेरू' में कवि ने इसी 'परंपरा' के अलग-अलग पहलुओं से हमें अवगत कराया है।
पहाड़ों का दर्द समेटे एक कविता 'पहाड़ का दर्द' भी संग्रह में मौजूद है, जो दूर-दूर से पहाड़ी सौन्दर्य निहारने और पहाड़ी जीवन के अनुभव लेने आये सैलानियों को समर्पित है। कवि के अनुसार वे सिर्फ कुछ समय के लिए पहाड़ी क्षेत्रों में आते हैं और मौज-मस्ती कर, सुनहरी यादें साथ ले चल देते हैं, लेकिन वे यहाँ के जीवन के दर्द को महसूस नहीं कर सकते।
पूरी 38 कविताओं के बाद पुस्तक में प्रेम पर लिखी एकमात्र कविता पढ़ने को मिलती है। यकीन नहीं होता कि किसी कवि की पहली पुस्तक में प्रेम कविता के लिए इतना इंतज़ार करना पड़ता है। 'यादें' कविता में कवि अपनी प्रेमिका के साथ बीते दिनों को याद करने के बहाने बहुत सारे नाज़ुक अहसासों को शब्द देता है।
एक कविता 'मैं अभी मरा नहीं हूँ' में कवि प्राकृतिक आपदाओं के दौरान होने वाली लूट-पाट/ साजिशों की हकीकत प्रस्तुत करता है। प्राकृतिक आपदाओं के दौरान भी लोग किस प्रकार अपनी लालसा की पूर्ति के लिए मानवता को भूल बैठते हैं और पीड़ित व्यक्तियों के साथ अमानवीय व्यवहार करते हैं, इस सच को बहुत स्पष्टता से कविता में पिरोया गया है।
'खाँसते पिता-1' में कवि ने वर्तमान दौर में अस्पतालों में हो रही लूट व मरीजों की व्यथा को उकेरने का एक असफल प्रयास किया है। इस कविता का कथ्य जितना मजबूत है, प्रस्तुतीकरण उतना ही कमज़ोर।
'खाँसते पिता-2' में एक बुज़ुर्ग व्यक्ति के घर में होने की अहमियत को बाख़ूबी शब्द दिये हैं। ऐसी कविताएँ आज के विकट दौर में बेहद प्रासंगिक हैं।
41 गद्य कविताओं से सजी इस पुस्तक की अधिकतर कविताएँ पढ़ने लायक हैं। इन ढेर सारी कविताओं में कुछ कविताएँ बहुत प्रभावी हैं, जिनमें से कुछ 'बाड़', 'किनारे की चट्टान', 'अक्षर की व्यथा', 'चिम्मु', 'आकांक्षा', 'कभी कभी' आदि हैं। कुछ कविताएँ ऐसी भी हैं जो अपनी विषय-वस्तु से भटकती हुई सी प्रतीत होती हैं।
पुस्तक में विभिन्न कविताओं में बहुत से स्थानीय शब्द भी पढ़ने को मिलते हैं, जिनसे पाठक का ज्ञान भंडार तो बढ़ता ही है, शब्दकोश भी व्यापक होता है। चिम्मु, काफ़ल, छ्ड़ोल्हू, कटारडू, मझयाड़ा, कुड़म, घेहड़ आदि कुछ ऐसे ही शब्द हैं।
पहली ही पुस्तक में इतनी अच्छी कविताओं को पढ़कर रचनाकार से और कई बेहतरीन पुस्तकों की उम्मीद बँधती है। पवन चौहान जी को सफल साहित्यिक भविष्य की शुभकामनाओं के साथ उनकी ही एक पंक्ति समर्पित। कलम ने कहा, "सफ़र जारी रखो, अपने आप रास्ते मिलते जायेंगे....मिल तो रहे हैं।"
समीक्ष्य पुस्तक- किनारे की चट्टान
विधा- कविता
रचनाकार- पवन चौहान
संस्करण- प्रथम, 2015
मूल्य- 70 रुपये
प्रकाशन- बोधि प्रकाशन, जयपुर
शानदार रचनाएँ हैं पठनीय पुस्तक
ReplyDeleteसादर आभार वंदना जी
DeleteThis comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा और प्रभावी समीक्षा,,,आपको और पवन चौहान जी को बधाई...��������
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका
Deleteबहुत सुंदर कविताओं की बड़ी शाइस्तगी से उम्दा समीक्षा की अनमोल,कवि और अनमोल को बधाई
ReplyDeleteआपका आशीर्वाद मिला...बहुत शुक्रिया दीदी
Delete