विज्ञान व्रत हमारे समय की ग़ज़ल का एक सुपरिचित नाम हैं। पिछले कुछ दशकों में ये ग़ज़ल और हिन्दी ग़ज़ल को जिस तरह समृद्ध करते आये हैं, वह उल्लेखनीय है। ये एक ऐसे रचनाकार हैं, जिन्होंने अन्य ग़ज़लकारों की तरह एक लीक पर चलना न स्वीकार कर, अपनी ही एक अलग राह तलाश की और उस राह पर लगातार चलते रहने के कारण अपनी एक पहचान स्थापित की। आज विज्ञान व्रत को यदि छोटी बह्र की ग़ज़लगोई का दूसरा नाम कह दिया जाए तो यह कहीं ग़लत नहीं होगा। विभिन्न रुक्नों (मात्रा खण्डों) की अलग-अलग छोटी बह्रों को जिस तरह आपने साधा है, वह रोचक तो है ही, अद्भुत भी है।
श्वेतवर्णा प्रकाशन, नई दिल्ली से हाल ही में विज्ञान व्रत जी का नवीनतम ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित हुआ है, रौशनी है आपसे। यह इनका तेरहवाँ ग़ज़ल संग्रह है। कुल 85 ग़ज़लों से सुशोभित इस संग्रह में वही विज्ञान व्रत वाली छाप हर जगह मौजूद है। पुस्तक में संकलित सभी ग़ज़लें छोटी बह्रों ही में हैं। ग़ज़लों के अलावा पुस्तक में इनके बनाए रेखाचित्र भी शामिल हैं। जैसा कि ग़ज़ल से परिचित अधिकतर लोग जानते ही हैं कि विज्ञान व्रत जी अपनी ग़ज़लों के साथ-साथ अपनी चित्रकारी से भी देश-विदेश में अपनी पहचान रखते हैं।
इस संग्रह की ग़ज़लों की बात करें तो सबसे पहली जिज्ञासा यही उठती है कि छोटी बह्र में आख़िर किस तरह कोई लगातार ग़ज़लें कह सकता है! और केवल ग़ज़लें कहता ही नहीं बल्कि पूरी ग़ज़लियत के साथ बेह्तरीन ग़ज़लगोई करता है लेकिन इस बेहद मुश्किल काम को अंजाम देकर ही तो विज्ञान व्रत जी, 'विज्ञान व्रत' होते हैं। आज जहाँ अनेक ग़ज़लकार छोटी और छोटी से छोटी बह्रों में ग़ज़लें कहते हुए बस भर्ती की ग़ज़लें या शेर कहते दिखते हैं, वहीं विज्ञान व्रत जी ने अपने लेखन को इस तरह साधा है कि पाठक उन्हें दशकों से चाव के साथ पढ़ते आ रहे हैं। छोटी से छोटी बह्र में ग़ज़लियत को किस तरह बरक़रार रखा जाता है, यह सीखने के लिए इनसे बेह्तर शायद ही कोई ग़ज़लकार मिले। भरपूर ग़ज़लियत के इनके कुछ शेर देखिए-
लोग थे जिस रास्ते
क्या वही था रास्ता
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आप नहीं कह पाएँगे
सबकुछ सच ही कहना है
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घर का अर्थ बताएगा
वो जो अब तक बेघर है
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ज़िंदगी भर मैं चला
तब कहीं रस्ता बना
इस संग्रह की रचनाओं को पढ़ते हुए ऐसे अनेक शेर अपनी ओर ध्यान खींचते हैं, जिनमें रहस्यवाद की भावना समाहित दिखती है। प्रतीकात्मकता के साथ बात कहना तो हालाँकि ग़ज़ल का मुख्य आकर्षण रहा ही है लेकिन इनके पास जो रहस्यवाद मिलता है, वह काफ़ी कुछ सूफ़ीवाद से प्रभावित नज़र आता है। प्रेम और उस प्रेम के प्रति इतना समर्पण कि वह ईश्वर तक एकाकार हो उठे, यहाँ भरपूर मिलता है। यहाँ लौकिक प्रेम भी है लेकिन बहुत कम, अलौकिक प्रेम की प्रचुरता है। और इस सबमें जो समर्पण की भावना है, वह ग़ज़ब की है।
तुमसे क्या पहचान हुई
दुनिया ही अनजान हुई
तुमने मेरा हाथ गहा
राह तभी आसान हुई
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आप मिले तो समझा मैं
आया एक ख़ज़ाने तक
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देखता हूँ अब जिधर
है अजब तुम हो वहाँ
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जो नहीं सबको मयस्सर
बस वही अह्सास हो तुम
इस समर्पित प्रेम और रहस्यवादिता में एक अलग ही तरह का विरोधाभास देखने को मिलता है, जो रचनाकार तथा उसके इष्ट को विशेष बनाता है। दोनों मिस्रों में एक-दूसरे से बिलकुल उलट भाव लिए शेर के जो अर्थ खुलते हैं, वे उलटबासियों तक पहुँचते दिखते हैं। यहाँ विरोधाभास अलंकार की छटा देखने योग्य है। कुछ शेर देखें-
ठहरे हो तुम क़तरे में
लेकिन सागर दिखते हो
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चित्र जो तेरा रहा
क्यूँ उसी में तू न था
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हर जगह मुझको मिले तुम
क्यूँ नहीं फिर भी दिखे तुम
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पास मेरे जब रहे तुम
दूर क्यूँ सबको दिखे तुम
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जो पता सब जानते थे
मैं वहाँ रहता नहीं था
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यह ग़ज़ब कैसे हुआ
सुन सका मैं अनकहा
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जब-जब मैं ख़ामोश हुआ
दुनिया भर में शोर मचा
दुनिया और उसकी हक़ीक़त की तहें भी आपको इस संग्रह की ग़ज़लों में खुलती दिखेंगी। विज्ञान व्रत जी अनुभव-संपन्न तो हैं ही, बारीकी से देखने-मेह्ससूने वाले रचनाकार भी हैं इसलिए अपने इर्द-गिर्द संसार के भीतर-बाहर वे वह सबकुछ देख आते हैं, जो एक सामान्य इंसान नहीं देख पाता। फिर चाहे खून-ख़राबे के मंज़र हों या इंसान का दूसरे इंसान से उपजा डर। थोथी-शान और दिखावा हो या संसार के भीतर छिपे अनेक संसार हों, वे हर जगह की थाह रखते हैं और बड़ी ख़ूबसूरती से उसे अपने शेर में पिरोकर उद्घाटित भी कर देते हैं-
बाहर तो डर ही डर है
ख़ुद में रहना बेह्तर है
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खून-ख़राबे का मंज़र है
किसकी ज़द में दुनिया भर है
डर लगता है सबको सबसे
सबका अपना-अपना डर है
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मिलना एक बहाना था
उसको शान दिखाना था
ऐसे वैसे से भी
उसको नाम कमाना था
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सोचना कुछ भी नहीं क्या
जो सुना बस कह दिया वो
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मैंने दुनिया देखी है
इसमें है संसार कई
इस संग्रह की ग़ज़लों में हैरानी भरे अनेक प्रश्न भी मिलते हैं। ये प्रश्न अपने आसपास की घटनाओं की उपज भी हैं तथा अपने ही भीतर हुई किसी हलचल का नतीजा भी। प्रश्न या हैरानी तब जन्मती है, जब हमारे आसपास वैसा न हो, जैसा होना हो बल्कि कुछ ऐसा हो, जिसकी उम्मीद न की गयी हो। आज का दौर ऐसी घटनाओं अथवा हलचलों से भरा पड़ा है। आज हम भीतर-बाहर हर जगह ही तो ऐसा बहुत कुछ देख रहे हैं। ऐसे में रचनाकार के ये प्रश्न/ हैरानी हम तक बहुत सहजता से पहुँचती है और हमारे भीतर के प्रश्नों तथा हैरानियों से एकाकार हो उठती है।
दुश्मनी ही दुश्मनी
दोस्ती का क्या हुआ
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गर ख़ुशी मह्सूस की
क्यूँ न चेहरे पर दिखी
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देखकर उस मसखरे को
आपका दिल रो पड़े तो
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इस बस्ती के सब लोगों में
उसका चेहरा क्यूँ दिखता है
विज्ञान व्रत जी की ग़ज़लें बहुत सादगी और सरलता लिए हुए होती हैं लेकिन उतने ही गहरे व गंभीर भाव अपने भीतर लिए रहती हैं। यही विशेषता इस संग्रह की ग़ज़लों की भी है। ये सभी ग़ज़लें हमसे बोलती-बतियाती हैं। भाषा इनकी सरल-सहज आम बोलचाल की ही है, जिसमें न उर्दू का गाढ़ापन देखने को मिलता है, न हिन्दी की संस्कृतनिष्ठता। वर्तमान समय का एक साधारण इंसान जिस भाषा का इस्तेमाल करता है, वही इन ग़ज़लों की भी भाषा है। निश्चित रूप से यह एक पठनीय संग्रह है।
समीक्ष्य पुस्तक- रौशनी है आपसे
विधा- ग़ज़ल (हिन्दी)
रचनाकार- विज्ञान व्रत
प्रकाशन- श्वेतवर्णा प्रकाशन, नई दिल्ली
संस्करण- प्रथम, 2023
पृष्ठ- 128
मूल्य- 200/- (सज़िल्द)
निसंदेह विज्ञान जी आज के दौर के सबसे सशक्त ग़ज़लगो हैं। दुष्यंत के बाद हिंदी ग़ज़ल को आगे ले जाने में आपकी अहम भूमिका है। रौशनी है आपसे की समीक्षा विज्ञान जी की गहरी पैठ की बानगी है। विज्ञान जी को बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका 🙏
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