वर्तमान ग़ज़ल अपने आप में विषयों का एक संसार समेटे है। अब ग़ज़ल के कथ्य में समाज की चिंताएँ, उसकी विसंगतियाँ, उत्सव, अवसर और आम जीवन से जुड़ी तमाम बारीक़ संवेदनाओं की बुनावट देखने को मिलती है। ग़ज़ल जितना आम इंसान के क़रीब आती जा रही है, उतना ही उसका फ़लक विस्तृत होता जा रहा है। आज देशभर में अनगिनत ग़ज़लकार ग़ज़ल विधा की साज-सँवार में लगे हैं। एक ग़ज़लकार जब ग़ज़ल की बुनावट को समझ लेता है तब उसकी ग़ज़लों का रूप निखर आ जाता है।
ज्ञानेन्द्र मोहन 'ज्ञान' की ये इक्यावन ग़ज़लें ग़ज़ल की बनावट और बुनावट को समझने की एक कोशिश है। इन ग़ज़लों में ज्ञानेन्द्र जी के ग़ज़लकार का एक स्वरूप निकलकर आ रहा है कि वे ग़ज़ल के ज़रिये यथार्थ की ज़मीन पर संवेदनाओं की फ़सल उगाने वाले ग़ज़लकार हैं। इनके पास दुनिया और समाज को देखने-जीने का विशिष्ट दृष्टिकोण है। यह दृष्टिकोण अनुभवजनित है। निर्मित किया गया है। जिसके लिए खाद का काम करता है इनका चिंतन। इस दृष्टिकोण के बूते वे अनेक शेर कहते हैं, जो केवल शेर नहीं, मार्गदर्शक की भूमिका में भी दिखते हैं। ये नसीहत के शेर हैं।
होकर उतावले न कोई फैसला करें
हर बात ख़ूब सोच-समझकर कहा करें
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ये समझ ले जूझना तुझको पड़ेगा रात-दिन
रास्ता अपना अगर आसान करना है तुझे
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अगर मसअला भाइयों में फँसा हो
लहू को कभी भी उबलने न देना
इनकी रचनाओं में आज के परिवेश की संवेदनाएँ गुँथी हुई मिलती हैं। इनके पास सरोकार हैं, जो एक रचनाकार को समाज के प्रति ज़िम्मेदार बनाते हैं। समाज और उसकी चिंताएँ ज्ञानेन्द्र मोहन जी की रचनाओं में रचे बसे हैं। यथार्थ इनकी रचनाओं का केन्द्र है और यह यथार्थ अनुभव की आँच में तपकर खरे-खरे शेरों की निर्मिती करता है।
नज़र है जिस्म पर दिल से मुहब्बत कौन करता है
बताओ तो हमें सच्ची इबादत कौन करता है
'निकालो काम अपना और फेंको' का चलन है अब
बिगड़ जाने पे चीज़ों की मरम्मत कौन करता है
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हम सबके बीच रहती थी इंसानियत कभी
आख़िर गयी कहाँ है चलो कुछ पता करें
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ज़ेह्न से जो आदमी बीमार है
कुछ भी समझाना उसे बेकार है
इनकी ग़ज़लों में सियासत की समझ है। वे अपनी इस समझ के ज़रिये ऐसे अनेक शेर कहते हैं, जो पाठकों के ज़ेहन पर जमी गर्द हटाने का काम करते हैं। इनके यहाँ सौहार्द की भावना और आपसी सद्भाव का समर्थन मिलता है। यानी ज्ञानेन्द्र मोहन जी का ग़ज़लकार समाज की ज़िम्मेदारियों के प्रति सजग है। वह अपनी रचनाओं के माध्यम से अपने पाठकों को हर उस पहलू से अवगत करवाना चाहता है, जिसकी उनके जीवन में ख़ास अहमियत है।
इक्यावन ग़ज़लों का इनका यह संग्रह 'आख़िर कैसे हल निकलेगा' इनकी ग़ज़ल यात्रा का दूसरा संकलन है। इससे पूर्व 2018 में हिंदी भाषा साहित्य परिषद खगड़िया द्वारा प्रकाशित इनकी 100 ग़ज़लों का संग्रह 'और कब तक' भी पाठकों द्वारा सराहा गया। इनकी सजग दृष्टि देखते हुए इनसे यह उम्मीद की जा सकती है कि भविष्य में ये ग़ज़ल और ख़ासकर हिन्दी ग़ज़ल के लाडले ग़ज़लकारों में शुमार हो सकते हैं। इनके पास प्रतिभा है, उस प्रतिभा की समझ है, ज़िम्मेदारी है। आशा है ये सही दिशा में ईमानदारी, मेहनत और लगन से उत्तरोत्तर आगे बढ़ते रहेंगे और अपनी जगह बनायेंगे।
- के. पी. अनमोल
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