Friday, November 2, 2018

अपने समय से संवाद करता संग्रह 'तब तुम कहाँ थे ईश्वर'



'तब तुम कहाँ थे ईश्वर' मन्दसौर (मध्यप्रदेश) निवासी आरती तिवारी की 58 कविताओं का संग्रह है, जो हाल ही बोधि प्रकाशन, जयपुर से प्रकाशित हुआ है। पुस्तक का शीर्षक ख़ुद ही इसकी कविताओं और रचनाकार की सोच की झलक देता प्रतीत होता है। यह शीर्षक उस सर्वशक्तिमान सत्ता को कटघरे में खड़ा करने की हिमाकत करता है, जो समस्त सृष्टि पर मालिकाना हक़ रखता है या यूँ कहें कि समस्त सृष्टि का रखवाला है। वर्तमान समय के विसंगत को अपनी रचनाओं के माध्यम में उजागर करना और उस पर सार्थक चर्चा करना एक साहित्यकार का कर्तव्य माना जाता है। अपने इस कर्तव्य को बा-ख़ूबी निभाते हुए आरती तिवारी जी अपनी रचनाओं में हमारे समाज में व्याप्त अनेकानेक विसंगतियों पर बहुत बेबाकी से अपनी कलम चलाती हैं। भ्रूण-हत्या, बलात्कार और हिंसा की प्रवृति, लड़कियों के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार, स्त्री जीवन के अनेक कठिन पहलुओं के साथ-साथ माता-पिता की स्नेहिल स्मृतियों, कोमल प्रेमपरक अनुभूतियों, प्रकृति की महत्ता, त्योहारों के प्रति कम होते जूनून, समय के साथ जीने की नसीहत आदि कई महत्वपूर्ण विषयों पर अपनी कविताओं के माध्यम से ध्यान खींचती यह कवियत्री अपने समय से संवाद करती है।

पुस्तक विभिन्न सकारात्मक विषयों पर मर्मस्पर्शी और सार्थक अभिव्यक्ति करने के साथ ही स्त्री से जुड़े कई अलग-अलग पहलुओं पर विस्तार से बात करती है। यह आरती जी की कविताओं की ख़ास विशेषता है कि वे बिना किसी शोर-शराबे के स्त्री विमर्श जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे में अपना अवदान देती हैं। 'कंजक' शीर्षक की एक एवं दो कविताओं के माध्यम से वे कन्या पूजन के लिए बालिकाओं की अनुपलब्धता पर भ्रूण हत्या के पक्षधर विकारग्रस्त सोच रखने वाले लोगों की ख़बर लेती हैं तथा इस अवसर की उमंगों के बीच संपन्न एवं वंचित परिवारों की बच्चियों में परस्पर तुलना कर, दोनों वर्गों के जीवन स्तर का चित्रांकन करती हैं।

"बड़े घरों की बेटियाँ
रेशमी परिधानों की छटा बिखेर
जा चुकी हैं मुँह झूठा करके"
......... 
"ये मजदूरों की छोरियाँ
लप लप खाए जा रही हैं खीर
और ऐसे कि कोई देख न ले
इनकी बन आई है इन दिनों"

एक अन्य महत्वपूर्ण कविता 'अज्ञात बलात्कारी के ख़िलाफ़ प्रकरण' में कवयित्री लड़कियों के चाल-चलन और पहनावे में उलझे अभिभावकों को लड़कों की सोच में संस्कार और जवाबदेही के भाव पोषित करने की सार्थक सीख देती हैं।

"भावनाओं के समन्दर में
गोते लगाते स्त्री-पुरुष
जब तक बचाते रहेंगे
बेटे में करवटें लेता हिंसक पुरुष
अज्ञात बलात्कारियों के खिलाफ
होते रहेंगे प्रकरण दर्ज"

'ख़ानदानी' कविता के माध्यम से वे सभ्य भेड़ियों के समाज में मौजूद कुछ अच्छे पुरुषों की ईमानदारी की प्रशंसा करती हैं। कविता 'कुछेक स्त्रियाँ' समाज सेवा और स्त्री उत्थान कार्यों में पाए जाने वाले दोगलेपन का उद्घाटन करती है। यूँ तो संग्रह की सभी कविताएँ पठनीय हैं लेकिन कुछ रचनाएँ इस संग्रह को विशिष्ट बनाती हैं, जैसे- दंगा, कर्फ्यू और भूख, कंजक (एक और दो), रोटी की कविता, स्पर्शती स्मृति, गर्भगृह के बाहर खड़ी स्त्री, चालीस पार की औरतें, अज्ञात बलात्कारी के ख़िलाफ़ प्रकरण, ख़ानदानी, तब तुम कहाँ थे ईश्वर, घर से भागी हुई लड़की आदि।

अपने समाज और समय की नब्ज़ टटोलता आरती तिवारी का यह प्रथम संग्रह निश्चित ही कविता के सुधि पाठकों को मंथन के लिए विवश करेगा। इस संग्रह के लिए रचनाकार और प्रकाशक, दोनों को बधाई।





समीक्ष्य पुस्तक- तब तुम कहाँ थे ईश्वर
विधा- कविता
रचनाकार- आरती तिवारी
संस्करण- प्रथम, सितम्बर 2018
मूल्य- 175 रूपये
पृष्ठ- 136
प्रकाशन- बोधि प्रकाशन, जयपुर

10 comments:

  1. सार्थक और सटीक समीक्षा,,, आपका लंबे अंतराल बाद समीक्षा की ओर लौटना अच्छा लगा,,,आपको और आरती तिवारी जी को हार्दिक बधाई..💐💐💐💐

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  2. बेहतरीन पुस्तक और सार्थक समीक्षा उत्सुकता जगाती हुई

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  3. लेखक और समीक्षक दोनों बधाई के पात्र हैं। कवयित्री समकालीन कविता की सशक्त हस्ताक्षर हैं और स्थापित गज़लकार अनमोल जी सूक्ष्म व पैनी दृष्टि से अवलोकन कर सच लिखने के लिए जाने जाते हैं। एक बार पुनः बधाई।

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    1. समय निकालने के लिए धन्यवाद कविता जी।

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  4. संग्रहणीय कविता संग्रह की सटीक समीक्षा।बधाई।

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  5. समीक्षा पढ़ कर पुस्तक पढने को रुझान बढता जा रहा है ।
    बहुत लाजवाब समीक्षा ।
    आरती तिवारी जी को उनके अपने संकलन साहित्य पर बधाई।

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  6. शुक्रिया प्रिय भाई अनमोल

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