Sunday, March 22, 2020

इश्क़ के नीले रंग से सराबोर संग्रह: नीला नीला



आज हम बात करने वाले हैं मुहब्बत की और सोचिए मुहब्बत की बात शायरी की ज़ुबानी हो तो कैसा मज़ा होगा!
जी हाँ, नीले-नीले इश्क़ की बातें ग़ज़लों के ज़रिये बिलकुल अलहदा अन्दाज़ में करने के लिए हमसे मुख़ातिब हैं जनाब गौतम राजऋषि। वही गौतम, जिन्होंने अपने बिलकुल जुदा कहन के अंदाज़ से शायरी को नई ताज़गी दी है। वही गौतम, जो किसी भी नए-पुराने ख़याल को अपने तरीक़े से लाजवाब बना देते हैं। वही गौतम, जो बेहद आम-सी चीज़ों को शायरी में पिरोकर नायाब बना देते हैं।

इस बार कर्नल गौतम हमारे लिए पेश हुए हैं राजपाल प्रकाशन के ज़रिये, जो किताबों और लेखन की दुनिया में एक रुतबा रखता है। 'नीला-नीला' नाम के अपने इस संग्रह में ये इश्क़ के रंग में पगी अपनी 111 ग़ज़लें लेकर आये हैं, जो युवा ग़ज़लप्रेमियों के लिए किसी बेहतरीन तोहफ़े से कम नहीं है।
हालाँकि प्यार, मुहब्बत और ग़ज़ल बहुत पुरानी चीज़ें हैं तो यह सवाल उठता है कि इनमें क्या नया मिल सकता है! लेकिन यक़ीन मानिए गौतम की कहन में वह कमाल है कि वे जिस चीज़ पर हाथ रख दे, उसे जगमगा कर रख सकते हैं। मेरी यह बात उन पाठकों के लिए बिलकुल नयी बात न होगी, जो गौतम को पढ़ चुके हैं। कुछ अशआर बानगी के तौर पर आप भी देखिए-

ख़ामोश घर चुभा तो मैं ये सोचने लगा
कब उसने रख दी पैर से पायल निकाल कर

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तेज़ हवा के इक झोंके ने जब बादल का नाम लिखा
धरती के सीने पर बारिश ने पायल का नाम लिखा

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क़ायदे से तो मुकम्मल होनी थी दीवानगी
लम्स था ऐसा कि दीवाना अधूरा रह गया

गौतम अपनी इन 111 ग़ज़लों के ज़रिये मुहब्बत के अनेक अलग-अलग शेड्स खींचते हैं। रोज़मर्रा की चुटीली बातों, झगड़ों, शिकवे-शिकायतों, मनुहारों, जुदाई के लम्हों, तड़प, किसी ख़ास के लिए नर्म-मुलायम एह्सासों जैसे कई-कई कथ्यों को वे इतनी ख़ूबसूरती से शेरों में ढालते हैं कि पढ़कर मन झूम-झूम उठता है।

भरी-भरी निगाह से ये देखना तेरा हमें
नसों में जैसे धीमे-धीमे बज रहा गिटार है

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लड़की ने लड़के के हाथों को हौले-से भींच लिया
जैसे ही हीरो ने हिरोइन को चूमा पिक्चर में

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रंग खिले हैं कितने सारे प्रेम कहानी में देखो
लाल-गुलाबी सी लड़की है लड़का नीला-नीला सा

गौतम जहाँ सामान्य शब्दों और विषयों में अलहदा शेर कहते हैं, वहीं बिलकुल ताज़े-अनछुए शब्दों/एह्सासों को इस्तेमाल करते हुए ताज़ादम शेर निकालते हैं। इनके यहाँ चाय, सिगरेट, चादर, कमरा, खिड़की, परदे, रसोई, बालकनी जैसे हमारे आसपास के सिर्फ शब्द नहीं, इन शब्दों/ जगहों/ चीज़ों से जुड़े हमारे ख़ास एह्सास मिलते हैं। वहीं मोबाइल, मैसेज, कॉल, स्पीकर, रिंग मास्टर, पोर्टिको कार, मैसेंजर, कल्चर, बैनर जैसे बिलकुल आज के शब्द इनकी ग़ज़लों का ज़ायका बढ़ाते हैं।

आँखें तो आँखें हैं जो दिखता है देखेगी लेकिन
जान मेरी सुन! तुझ पर ही बस सारा फ़ोकस रहता है

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हुआ अरसा नहीं बुझती बुझाने से भी यह कमबख्त
तुम्हारी याद की सिगरेट जो सुलगी हुई सी है

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रात गये पढ़ता रहता हूँ मैसेंजर के सन्नाटे
तेरी ख़ामोशी सुनता हूँ मोबाइल के स्पीकर में

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लहराता है हरा दुप्पटा उस छज्जे पर अक्सर जब
इस खिड़की में आह भरे है पर्दा नीला-नीला सा

गौतम आज के ग़ज़ल-परिदृश्य के उन चुनिन्दा नामों में हैं, जो तीन सौ साला ग़ज़ल को बिलकुल नई-नवेली बनाकर पेश कर रहे हैं। वे इन दिनों के ग़ज़लकारों में अपनी एकदम स्पष्ट छवि रखते हैं। इससे पहले इनका एक ग़ज़ल संग्रह आया है और भरपूर लोकप्रिय रहा है। ग़ज़ल के अलावा ये गद्य लेखन में भी हाथ आज़माते हैं और देशभर की नामचीन पत्रिकाओं में ससम्मान प्रकाशित भी होते हैं। इनके लेखन के सिलसिले को और आगे बढ़ाता यह 'नीला नीला' संग्रह इनके चाहनेवालों के दिलों में इनकी जगह को और मज़बूत करेगा, यह मेरा यक़ीन है।

इस बेहतरीन और ताज़ादम ग़ज़ल संग्रह के लिए प्रिय ग़ज़लकार गौतम राजऋषि को दिली मुबारकबाद और आकाश भर शुभेच्छाएँ।




समीक्ष्य पुस्तक- नीला नीला
विधा- ग़ज़ल
रचनाकार- गौतम राजऋषि
प्रकाशक- राजपाल एण्ड सन्ज़, दिल्ली
संस्करण- प्रथम 2020
मूल्य- 175 रुपये

अमेज़न लिंक-
https://www.amazon.in/Neela-Gautam-Rajrishi/dp/9389373190

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